Thursday 27 September 2012

गरुडाचे वारिके कासे पितांबर। सांवळे मनोहर कैं देखेन॥


गरुडाचे वारिके कासे पितांबर। सांवळे मनोहर कैं देखेन॥
बरविया बरवंटा घनमेघ सांवळा। वैजयंतीमाळा गळां शोभे॥
मुगुट माथा कोटि सूर्याचा झल्लाळ। कौस्तुभ निर्मळ शोभे कंठी॥
वोतीव श्रीमुख सुखाचे सकळ। वामांगी वेल्हाळ रखुमादेवी॥
उद्धव अक्रूर उभे दोहींकडे। वर्णिती पवाडे सनकादिक॥
तुका म्हणे नव्हे आणिकांसारिखा। तोचि माझा सखा पांडुरंग॥


गरुडरुपी घोडे पर आरूढ, कमर में पीतांबर कसा हुआ, मन को हरने वाला शामसुंदर रूप मैं कब देखूँगा? सबसे उत्तम, मेघ की तरह श्याम, गले में वैजयंती माला शोभायमान है, मस्तक पर कोटीसूर्य के तेज से चमक रहा मुकुट है और गले में निर्मल कौस्तुभ शोभायमान है, ऐसा श्रीमुख जिसमें मानों सारे सुखों का रस उडेल दिया हो, और जिसकी बाईं ओर रखुमादेवी हैं, एक तरफ उद्धव और अक्रूर खडे हैं और सनकादी जिनका गुणवर्णन कर रहे हैं – तुका कहे जो किसी और के जैसा नहीं वही मेरा सखा पांडुरंग है। 

Saturday 22 September 2012

कर कटावरी तुळसीच्या माळा। ऐसे रूप डोळा दावी हरी॥


कर कटावरी तुळसीच्या माळा। ऐसे रूप डोळा दावी हरी॥
ठेविले चरण दोन्ही विटेवरी। ऐसे रूप हरी दावी डोळा॥
कटी पितांबर कास मिरवली। दाखवी वहिली ऐसी मूर्ती॥
गरुडपारावरी उभा राहिलासी। आठवे मानसी तेचि रूप॥
झुरोनि पांझरा होऊ पाहे आता। येई पंढरीनाथा भेटावया॥
तुका म्हणे माझी पुरवावी आस। विनंती उदास करू नये॥

हे हरी, कमरपर हाथ रखे और गले में तुलसीकी माला पहने ऐसा रूप मैं अपनी आँखों से देखूं। और हे हरी, दोनो चरण ईंट पर रखे हुए ऐसा रूप मैं इन आँखों से देखूं। त्वरित, अपनी कमर में पीतांबर पहनी मूर्ती मुझे दिखाओ। गरुडपर खडे हुए आपका रूप मैं मन में याद कर रहा हूँ। आपकी इस मूर्ती को देखने की तीव्र इच्छा की वजह से मैं अब अस्थिपंजर का सा हो गया हूँ। अब तो, हे पंढरीनाथ, मेरी इच्छापूर्ती करो। मेरी विनती को न दुत्कारो। 

Sunday 2 September 2012

राजस सुकुमार मदनाचा पुतळा। रविशशिकळा लोपलिया॥


राजस सुकुमार मदनाचा पुतळा। रविशशिकळा लोपलिया॥
कस्तुरी मळवट चंदनाची उटी। रुळे माळ कंठी वैजयंती॥
मुगुट कुंडले श्रीमुख शोभले। सुखाचे ओतिले सकळही॥
कासे सोनकळा पांघरे पाटोळा। घननीळ सांवळा बाइयांनो॥
सकळही तुम्ही व्हा गे एकीसवा। तुका म्हणे जीवा धीर नाही॥
राजस, सुकुमार मानो स्वयं मदन हो, जिसके तेज से सूर्य चंद्र का तेज भी लुप्त हो जाए।

कस्तूरी चंदन का लेप माथेपर लगा है। कंठ में वैजयंती माला झूल रही है।

सुंदर मुख मस्तक पर रखे मुकुट और कानों में कुंडलों से सुशोभित है मानो सारा सुख उस चेहरे में उतरा है।

कमर मे सोने की माला और शरीर सुंदर वस्त्रों से ढका है वो घन की तरह नीलवर्ण, अरे स्त्रियों, हटो राह से और मुझे देखने दो क्योंकि तुका कहे, अब मैं अधीर हुआ। 

Saturday 1 September 2012

सदा माझे डोळा जडो तुझी मूर्ती। रखुमाईच्या पती सोयरिया॥


सदा माझे डोळा जडो तुझी मूर्ती। रखुमाईच्या पती सोयरिया॥
गोड तुझे रूप गोड तुझे नाम। देई मज प्रेम सर्व काळ॥
विठो माऊलिये हाचि वर देई। संचरोनि राही हृदयामाजी॥
तुका म्हणे काही न मागे आणिक। तुझे पायी सुख सर्व आहे॥


हे प्रियकर, रखुमाई के पती, सदैव मेरी आँखें तुम्हारी मूर्ती को निहारती रहें।

तेरा रूप मधुर, तेरा नाम मधुर, मुझे हर समय केवल तेरा ही प्रेम रहे।

हे माँ समान विठ्ठल यही वर देना की तुम्हारा संचार मेरे हृदय में रहे।

तुका कहे और कुछ नहीँ है माँग मेरी, तेरे चरणों में ही सारा सुख है॥

धर्माची तू मूर्ती। पाप पुण्य तुझे हाती॥


धर्माची तू मूर्ती। पाप पुण्य तुझे हाती॥
मज सोडवी दातारा। कर्मापासूनि दुस्तरा॥
करिसी अंगीकार। तरी काय माझा भार॥
जिवींच्या जीवना। तुका म्हणे नारायणा॥
तुका कहे जीवों के जीव नारायण से।
तू धर्म की मूर्ती है। पाप पुण्य तेरेही हाथ में हैं।

इसलिए हे देनेवाले मुझे छुडा ले इस दुस्तर कर्म से।

मेरा भार ही कितना है? मुझे अपने में समा ले।