Thursday 8 November 2012

निंदी कोणी मारी। वंदी कोणी पूजा करी॥


निंदी कोणी मारी। वंदी कोणी पूजा करी॥
मज हेही नाही तेही नाही। वेगळा दोहीपासुनी॥
देहभोग भोगे घडे। जे जे जोडे ते बरे॥
अवघे पावे नारायणी। जनार्दनी तुकयाचे॥

कोई निंदा करे, या मारे, वंदन करे या पूजा करे, मुझे इस का न कोई दु:ख है ना सुख। मैं दोनों से अलग हूँ। जो भोग होते हैं वे देह को होते हैं इसलिए जो भोग होते हैं वे अच्छे हे होते हैं। तुका कहे ये भोग सारे नारायण के हैं, उसीके पास जाते हैं।  

आम्ही तरी आस। जालो टाकोनि उदास॥


आम्ही तरी आस। जालो टाकोनि उदास॥
आता भय धरी। पुढे मरणाचे हरी॥
भलते ठायी पडो। देह तुरंगी हा चढो॥
तुमचे तुम्हांपाशी। आम्ही आहो जैसी तैसी॥
गेले मानामान। सुखदु:खाचे खंडन॥
तुका म्हणे चित्ती। नाही वागवीत खंती॥

हमनें तो सारी आशा का त्याग किया है। हे हरी, अब मृत्यु का भय किसे है? देह जहाँ चाहे वहाँ गिरे या फिर घोडे पर बैठे। जो सुखदु:खादि भोग हैं वह तुम्हारे हैं, तुम्हारे पास ही रहें। उनका संबंध हम से नहीं, हम जैसे हैं वैसे हैं। मान और अपमान का खंडन हो गया है और सुखदु:खका नाश हो गया है। तुका कहे, इस के बारे में कोई खेद अब हमारे चित्त में नहीं।