Tuesday 15 October 2013

सादगी पर उसकी मर जाने की हसरत दिल में है

सादगी पर उसकी मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता, कि फिर खंजर कफ-ए-कातिल में है

देखना तकरीर की लज्जत कि जो उसने कहा
मैंने यह जाना, कि गोया यह भी मेरे दिल में है

गरचे है किस किस बुराई से वले बा ईं हमः
जिक्र मेरा, मुझसे बेहतर है, कि उस महफिल में है

बस, हुजूम-ए--ना उमीदी, खाक में मिल जाएगी
यह जो इक लज्जत हमारी सअि-ए-बे हासिल में है

रँज-ए-रह क्यों खींचिए, वामान्दगी को अिश्क है
उठ नहीं सकता हमारा जो कदम मंजिल में है

जल्वः जार-ए-आतश-ए-दोजख हमारा दिल सही
फितन-ए-शोर-ए-कयामत, किसकी आब-ओ-गिल में है

है दिल-ए-शोरीद-ए-गालिब तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब
रहम कर अपनी तमन्ना पर कि किस मुश्किल में है

सादगी - सरलता, भोलापन
हसरत - अभिलाषा
कफ-ए-कातिल - कातिल (माशूक) के हाथ में
तकरीर - भाषण, वार्ता
लज्जत - मजा, स्वाद, आनंद
गोया - जैसे की, मानो की
वले बा ईं हमः - लेकिन इन सब के बावजूद
हुजूम-ए-नाउमीदी - निराशा का समूह
सअि-ए-बेहासिल - निष्फल प्रयत्न
रँज-ए-रह खेंचना - पथ के दुख उठाना
वामान्दगी - थकन, श्रांति
जल्व जार-ए-आतश-ए-दोजख - नरकाग्नि से भरा हुआ
फितन-ए-शोरीद-ए-गालिब - गालिब का उन्मन और व्याकुल हृदय
तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब - दुख और व्याकुलता का जादूगर
http://www.youtube.com/watch?v=eIVp4_QKOQk

Saturday 12 October 2013

कब वह सुनता है कहानी मेरी

कब वह सुनता है कहानी मेरी
और फिर वह भी जबानी मेरी

खलिश-ए-गमजः-ए-खूँरेज न पूछ
देख खूँनाबः फिशानी मेरी

क्या बयाँ करके मिरा, रोयेंगे यार
मगर आशुफ्तः बयानी मेरी

हँू जिखुद रफ्तः-ए-बैदा-ए-खयाल
भूल जाना है, निशानी मेरी

मुतकाबिल है, मुकाबिल मेरा
रुक गया, देख रवानी मेरी

कद्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ
सख्त अरजाँ है, गिरानी मेरी

गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ
सरसर-ए-शौक है, बानी मेरी

दहन उसका, जो न मालूम हुआ
खुल गई हेच मदानी मेरी

कर दिया जोफ ने आजिज गालिब
नँग-ए-पीरी है, जवानी मेरी

खलिश-ए-गमजः-ए-खूँरेज = रक्तप्रवाही कटाक्ष की चुभन। 
खूँनाबः फिशानी = रक्त का प्रभाव, खून का बहाव।
जिखुद रफ्तः-ए-बैदा-ए-खयाल = (जिखुद रफ्त = खोया हुआ। बैदा - सहरा, जंगल) कल्पना के वन में खोया हुआ।
मुतकाबिल = विमुख, जो सामना न कर सके
मुकाबिल = सम्मुख, सामना करनेवाला
रवानी = प्रभाव, धार, तेजी, वेग।
कद्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह = पथ में पडे रोडे का मूल्य
सख्त अरजाँ = बहुत सस्ती
गिरानी = बहुमूल्याता, महँगापन, भारीपन
गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी = व्याकुलता की राह का बगूला (वातचक्र)
सरसर-ए-शौक = शोक की आँधी
बानी = प्रवर्तक, संस्थापक
दहन = मुँह 
हेच मदानी = अनभिज्ञता
जोफ = निर्बलता
आजिज = विवश, मजबूर
नँग-ए-पीरी = बुढापे को लज्जित करनेवाली

http://www.youtube.com/watch?v=wWj6jAm46RE